सुलतानपुर आदमपुर की नगर पंचायत चुनावों में राजनीति के पटल पर एक बड़ा मोड़ आ गया है। निर्दलीय प्रत्याशी वरीस अहमद का नामांकन पत्र रद्द कर दिया गया है। वजह? “दो से अधिक बच्चे”। यह मुद्दा अब सियासी गलियारों में चर्चा का केंद्र बन चुका है। बृहस्पतिवार को हुई नामांकन पत्रों की जांच में यह फैसला लिया गया, और इसके बाद से ही क्षेत्र में राजनीति की गहमागहमी बढ़ गई है।
कांग्रेस और बसपा को मिला फायदा?
नगर पंचायत सुलतानपुर आदमपुर में कुल 13 प्रत्याशियों ने अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल किया था। लेकिन नामांकन पत्रों की जांच के बाद निर्दलीय प्रत्याशी वरीस अहमद का पर्चा खारिज हो गया। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के खेमों में इस खबर के बाद से उत्साह का माहौल है। माना जा रहा है कि निर्दलीय प्रत्याशी के बाहर होने से इन दलों को सीधा फायदा होगा।
“दो से अधिक बच्चे” का नियम:
उत्तर प्रदेश पंचायत अधिनियम के अनुसार चुनावों के लिए लागू नियमों के तहत, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति का नामांकन रद्द किया जा सकता है। वरीस अहमद के मामले में यह नियम सख्ती से लागू किया गया। उनके नामांकन पत्र में दो से अधिक बच्चों का उल्लेख पाया गया, जिसके चलते रिटर्निंग अफसर ने इसे रद्द कर दिया।

निर्दलीय उम्मीदवारों की साख पर सवाल
इस घटना के बाद निर्दलीय उम्मीदवारों की स्थिति कमजोर होती दिख रही है। 13 नामांकनों में से दो प्रत्याशियों, नौशाद और मुमताज, ने पहले ही अपने नामांकन वापस ले लिए थे। वरीस अहमद का नामांकन रद्द होने के बाद अब निर्दलीय खेमे में केवल दो ही प्रभावी उम्मीदवार बचे हैं।
आरक्षण ने बढ़ाई सियासी सरगर्मी
गौरतलब है कि सुलतानपुर आदमपुर की नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित है। इस आरक्षण ने कांग्रेस और बसपा को मजबूत दावेदार बना दिया है। दोनों पार्टियां इस आरक्षित सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करने की पूरी कोशिश में जुटी हैं।
चुनावी मैदान में बचे अब 10 प्रत्याशी
नामांकन पत्रों की जांच और नामांकन वापस लेने की प्रक्रिया के बाद अब चुनावी मैदान में कुल 10 प्रत्याशी बचे हैं। इनमें कांग्रेस और बसपा के उम्मीदवारों के साथ दो निर्दलीय भी शामिल हैं। हालांकि, निर्दलीय खेमे में अब पहले जैसी मजबूती नहीं दिख रही।
वरीस अहमद के पर्चा खारिज होने के बाद कांग्रेस और बसपा ने अपने चुनाव प्रचार में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना शुरू कर दिया है। उनके समर्थकों का कहना है कि यह घटना “नियमों के पालन” का उदाहरण है और क्षेत्र में “साफ-सुथरी राजनीति” की जरूरत को दर्शाती है। दूसरी ओर, निर्दलीय प्रत्याशियों और उनके समर्थकों का आरोप है कि यह फैसला राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है।
अंतिम लड़ाई में कौन मारेगा बाजी?
अब जब मैदान में केवल 10 प्रत्याशी बचे हैं, सवाल यह है कि क्या कांग्रेस और बसपा अपने पारंपरिक वोट बैंक को साधने में कामयाब होंगे, या निर्दलीय उम्मीदवार फिर से अपनी ताकत दिखाएंगे।