इश्क, धोखा और जुनून — जब ये रिश्तों की सीमाएं तोड़ते हैं, तो अक्सर परिणाम बेहद खौफनाक होते हैं। हाल ही में सामने आए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े यही सच्चाई उजागर कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में पूरे देश में 785 पतियों की हत्या हुई है — और सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि सबसे ज्यादा 198 मामले उत्तर प्रदेश से सामने आए हैं।
इन आंकड़ों ने देशभर में सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या अब वैवाहिक रिश्तों में भी भरोसे की जगह शक और साजिश ने ले ली है? अधिकतर मामलों में पति की हत्या के पीछे पत्नी और उसके प्रेमी का हाथ पाया गया है। कुछ घटनाओं में तो पूरे ससुराल पक्ष की मिलीभगत भी सामने आई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि बदलती सामाजिक संरचना, मोबाइल और सोशल मीडिया के जरिए बढ़ते अफेयर, और पारिवारिक संवाद की कमी — ये सब मिलकर ऐसी घटनाओं को जन्म दे रहे हैं। NCRB के मुताबिक, कई मामलों में महिलाएं पहले अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा या प्रताड़ना के झूठे केस करती हैं, फिर प्रेमी के साथ मिलकर हत्या जैसे अपराध को अंजाम देती हैं।
📊 प्रमुख राज्यों के आंकड़े— उत्तर प्रदेश बना ‘पति मर्डर कैपिटल’
राज्य | 2020 | 2021 | 2022 | 2023 | 2024 |
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उत्तर प्रदेश | 45 | 52 | 60 | 55 | 62 |
बिहार | 30 | 35 | 40 | 39 | 42 |
राजस्थान | 20 | 25 | 28 | 30 | 35 |
महाराष्ट्र | 15 | 18 | 20 | 22 | 25 |
मध्य प्रदेश | 12 | 15 | 18 | 20 | 22 |
उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र रहा, जहां 121 पति मारे गए। इसके बाद मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में भी दर्जनों मामले सामने आए। NCRB ने इन हत्याओं को “स्पाउस मर्डर” की कैटेगरी में रखा है, जिसमें पति या पत्नी में से किसी एक की हत्या वैवाहिक संबंधों से जुड़े कारणों या अवैध संबंधों के चलते की जाती है।
विश्लेषकों का कहना है कि ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि समाज में रिश्तों के गिरते स्तर की कहानी है। पांच साल में 785 पति मारे जाना कोई मामूली बात नहीं है। यह साफ इशारा करता है कि अब विवाह जैसा पवित्र बंधन भी अपराध की साजिशों से अछूता नहीं रह गया है।
सवाल यह है कि क्या इन मामलों में कानून उतनी ही तेजी से काम करता है, जितनी तेजी से महिला संबंधित शिकायतों पर होता है? कई संगठनों ने NCRB के आंकड़े सामने आने के बाद पुरुष आयोग की मांग को फिर से हवा दी है।
अब देश को यह सोचना होगा कि सिर्फ महिलाओं की सुरक्षा नहीं, पुरुषों की भी गरिमा और जान की कीमत उतनी ही अहम है। कहीं ऐसा न हो कि कानून के नाम पर किसी एक पक्ष को न्याय मिल जाए और दूसरा कब्र में उतर जाए।