हरिद्वार। मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार को लेकर प्रशासन ने हाल ही में कुछ ग्राम विकास अधिकारियों (वीडीओ), रोजगार सेवकों और मेटों पर कार्रवाई कर एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब जांच की जिम्मेदारी उसी अधिकारी को दी जाए जिस पर गड़बड़ियों की परछाई हो, तो क्या सच सामने आएगा? क्या यह व्यवस्था ईमानदारी की उम्मीद जता सकती है?
जिले भर में मनरेगा पोर्टल पर श्रमिकों की फर्जी उपस्थिति और मोबाइल ऐप के जरिए गलत फोटोग्राफ्स अपलोड करने का मामला सामने आया था। जवाब में जिला प्रशासन ने 14 वीडीओ को प्रतिकूल प्रविष्टि, 11 रोजगार सेवकों की वेतनवृद्धि पर रोक लगाते हुए मेटों को कार्य से हटाने जैसी कार्रवाई की। लेकिन ब्लॉक स्तर पर जिन जिम्मेदार अधिकारियों के संरक्षण में ये गड़बड़ियां हुई, वो अधिकारी सिर्फ चेतावनी पाकर छूट गए।
यानी छोटी मछलियां पकड़ी गईं, ओर मगरमच्छ अब भी तालाब में राज कर रहे हैं।
जिनकी सरपरस्ती में हुआ इतना बड़ा घोटाला वही बने जांच अधिकारी
जानकारी के अनुसार, जब पंचायतो में मनरेगा कार्य प्रगति पर होते हैं अगर कोई ग्रामीण कार्यों में गड़बड़ी की शिकायत लेकर ब्लॉक मुख्यालय पहुंचता है तो इन्हीं अधिकारियों द्वारा शिकायतकर्ता को दफ्तर के चक्कर कटवाए जाते है, आखिरकार शिकायतकर्ता थकहार कर अपने घर बैठ जाते हैं, ऐसे में जिन अधिकारियों की देखरेख में इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ अब वहीं ब्लॉक में बैठे बिडीओ जांच रिपोर्ट तैयार करेंगे, फील्ड सत्यापन करेंगे , तो निष्पक्षता की उम्मीद किससे की जाए? यह ‘जांच कम, लीपापोती ज़्यादा’ जैसा दिख रही है।
वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मनरेगा जैसी गरीबों की योजना को योजनाबद्ध तरीके से लूटा जा रहा है। कागज़ों पर काम, पोर्टल पर फर्जी फोटो, और हाजिरी में हेराफेरी—यह सब कुछ बिना ऊपरी संरक्षण के संभव नहीं।
अब सवाल यह है कि क्या जिलाधिकारी स्तर से स्वतंत्र जांच टीम नहीं बनाई जानी चाहिए थी? क्या ब्लॉक में बैठा वही अधिकारी, जिसकी सरपरस्ती में इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ हो तो वहीं अपने सर्किल में निष्पक्ष जांच कैसे कर पाएगा?
अगर यही चलता रहा, तो मनरेगा का तालाब भ्रष्टाचार के मगरमच्छों का स्थायी डेरा बन जाएगा, और हर बार सिर्फ छोटी मछलियां ही पकड़ी जाएंगी।
अब वक्त है कि आला अधिकारियों को मनरेगा को राजनीति और भ्रष्ट व्यवस्था से बचाकर, ईमानदार निगरानी और सख्त जवाबदेही की ओर ले जाया जाए। वरना यह योजना भी एक ‘कागजी न्याय’ बनकर रह जाएगी।