सुल्तानपुर नगर पंचायत चुनाव में इस बार मुद्दा विकास, सड़क, या पानी नहीं, बल्कि ‘नशा’ है। नौजवानों की नसों में जहर घोल रहे नशे ने ज़्यादातर घरों को परेशान कर रखा है। राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे पर गर्मा-गर्म बहस हो रही है। हर उम्मीदवार अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखकर वोट मांग रहा है।
कौन है जिम्मेदार? नेता या सिस्टम?
चुनाव प्रचार के दौरान यह सवाल हर जगह गूंज रहा है कि आखिर इस जहर का असली जिम्मेदार कौन है? क्या यह प्रशासन की नाकामी है, या फिर नेताओं की अनदेखी का नतीजा? कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि राजनीतिक लोगों ने ही वोट के लिए इस समस्या को बढ़ावा दिया है।
‘नशा मुक्त सुल्तानपुर’ के वादे पर मचेगा घमासान
हर उम्मीदवार अपने भाषण में ‘नशा मुक्त सुल्तानपुर’ का वादा कर रहा है। लेकिन जनता पूछ रही है कि यह वादा कब तक पूरा होगा? पिछली बार भी यही वादे किए गए थे, लेकिन हालत बद से बदतर हो गए है।
माताओं और बहनों की आहें बनेंगी वोट
चुनाव में सबसे ज्यादा नाराजगी महिलाओं में देखी जा रही है। घर के नौजवानों को नशे में बर्बाद होता देख, माताओं और बहनों का गुस्सा अब वोट के रूप में बाहर आने वाला है। महिलाएं साफ कह रही हैं कि इस बार वोट उसी को मिलेगा, जो नशे पर लगाम लगाएगा।
छोटे कस्बों में बढ़ रहा है नशे का गोरखधंधा
सुल्तानपुर जैसे छोटे शहरों और कस्बों में नशे का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह सब प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा है। गली-गली में नशे के सौदागर खुलेआम घूम रहे हैं, और नौजवान बर्बादी की कगार पर हैं।
क्या वाकई नशा बनेगा वोट का मुद्दा?
अब देखना दिलचस्प होगा कि यह मुद्दा सिर्फ भाषणों और वादों तक सिमटकर रह जाएगा, या फिर चुनाव के बाद भी इस पर काम होगा। सुल्तानपुर की जनता अब बदलाव चाहती है, और इस बार आपका वोट नशे के खिलाफ आवाज बनेगा।
“तो, क्या इस बार सुल्तानपुर के चुनावी रण में ‘नशा’ को हराने वाला बनेगा विजेता?”